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Gandhis after Gandhi

Media Mirchi
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jayantiकांग्रेस की दूसरी पंक्ति की कद्दावर नेताओं में तमिलनाडु की जयंती नटराजन का नाम इन दिनों सुर्खियों में है। राहुल के इशारे पर जयंती से पर्यावरण मंत्रालय छीन लिया गया जो जुलाई 2011 से ही इस मंत्रालय में जमी हुई थी। सूत्रों की माने तो पर्यावरण मंत्रालय में जयंती नटराजनके पदार्पण के साथ ही मंत्रालय का काम काज मंद पड़ गया था। मंत्रालय के ‘हाँ’ की भारी-भरकम फीस ‘जयंती टैक्स’ से पूरे महकमे में हड़कंप था। बीते सप्ताह गोवा में नरेंद्र मोदी ने अपनी रैली में सीधे-सीधे कांग्रेस पर हमला किया और जयंती नटराजन की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर दिये।


‘जयंती टैक्स’ पेमेंट के इंतजार में 65 से अधिक महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट इंनवायरमेंट क्लीरेंस के इंतजार में रूके पड़े थे जिसे नए मंत्री वीरप्पा मोईली ताबड़-तोड़ निपटाने में लगे हैं। पुष्ट खबर है कि पिछले 18 दिनों में 70 प्रोजेक्टस को मंजूरी दे दी गई। यह तो मानो कोई विंटर डिस्काउंट आफर चल रहा हो। हालांकि राहुल गाँघी के इशारे पर जयंती नटराजन को पद से हटाकर वापस पार्टी की जिम्मेदारी सौपना भ्रष्टाचार पर हमला नहीं ब्लकि भ्रष्टाचार को छुपाने का प्रयास कहना ज्यादा सटीक होगा। पार्टी सूत्र राहुल को लगातार आगाह करते रहे कि पर्यावरण मंत्रालय में सब-कुछ ठीक ठाक नही चल रहा है।


परंतु इन सब विवादों में नरेंद्र मोदी का स्वेच्छा से कूदना कुछ लोगों को समझ नहीं आया। दरअसल केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय और नरेंद्र मोदी के आमने-सामने होने का कारण मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ को लेकर है। कांग्रेस का पूरा कुनबा एकजुट है कि किसी तरह इस प्रोजेक्ट को रोका जाये। कांग्रेस को जब मोदी की इस मुहिम की काट नहीं दिखी तो उसने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के द्धारा पूरे प्रोजेक्ट पर ग्रहण लगाने की कोशिस की है। नर्मदा नदी में सरदार सरोवर डैम और सूलपनेश्वर अभ्यारण्य से निकटता को कारण बताकर प्रोजेक्ट को रोकने की कवायद जोरों पर है।


बीते पंद्रह दिसंबर को जब देश के पांच सौ से अधिक स्थानों से ‘रन फॉर यूनिटी’ कार्यक्रम का आयोजन हुआ तो विभिन्न दलों की ओर से इसे भाजपा का राजनैतिक हथकंडा बताया गया। वैसे तो मोदी की यह पूरी कवायद सरदार पटेल की महानता और देश के प्रति उनके योगदान को नये सिरे से उकेरने को लेकर है। परंतु यह इतना भर नही है, यह मोदी भी जानते हैं और कांग्रेस भी। कहीं न कहीं यह देश को गाँधी परिवार की जद से बाहर निकालने का प्रयास भी है। आजादी के 66 बर्षों के बाद भी आज देश में ‘गांधीस् आफ्टर गाँघी’ की परंपरा जिस कदर हावी है उसकी हवा निकालने की कवायद है यह स्टैच्यू आफ यूनिटी।


भारत में 565 पृथक रियासतों को समाहित करने का भगीरथ प्रयास करके सरदार पटेल ने अखंड भारत का निर्माण किया था। इसी कारण लौह पुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल के समानांतर व्यक्तित्व भारतीय राजनीति में दुसरा कोई नहीं है, शायद इस बात पर हम सब सहमत हैं। परंतु जिस प्रकार एक परिवार विशेष के द्धारा साजिश के तहत पटेल को इतिहास के पन्नों से बाहर ढकेला गया है वह शर्मनाक है। इस प्रकार तो भारत के गौरान्वित इतिहास को बदरंग किया जा रहा है और उसे महात्मा, नेहरू, इंदिरा और राजीव तक सीमित कर दिया गया है। अमूमन हर सरकारी योजना का नाम गाँधी परिवार से जोड़ा जाना तर्कहीन है।

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नेहरू, इंदिरा और राजीव गाँधी नामकरण ट्रेंड के इस त्रिकोण ने देश में चुतुर्मुख विकास किया है और कुल मिलाकर देखें तो ‘गाँधीस् आफ्टर गाँधी’ का कथन बिलकुल सटीक प्रतीत होता है।


नर्मदा नदी के बीचों बीच ‘साधु बेट’ नामक द्धीप पर 182 मीटर (लगभग 600 फीट) उंचे इस विशालतम मूर्ति का निर्माण किया जा रहा है। यह द्धीप सरदार सरोवर डैम से 3.2 किमी. की दूरी पर है। द्दीप पर पहुँचने के लिए पर्यटकों को छोटे-बड़े जहाज उपलब्ध रहेंगे। गुजरात सरकार द्दारा विशेष अधिकार प्राप्त ‘सरदार वल्लभ भाई पटेल राष्ट्रीय एकता ट्रस्ट’ ही पूरे निर्माण और देखभाल के लिए जिम्मेदार होगी।


इस प्रस्तावित मूर्ति का अमेरिका स्थित स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी से दुगुनी होना इसके अविसवसनीय विशालतम आकार को परिलक्षित करता है। नर्मदा नदी के बीचों बीच सरदार सरोवर डैम से 3.2 किमी. की दूरी पर बननेवाले इस विशालकाय मूर्ति का निर्माण अमेरिका की टर्नर कन्स्ट्रक्शन कंपनी करेगी। इसी कंपनी ने दुबई की शानदार 830 मीटर उंची बुर्ज खलीफा जैसी विशाल इमारत बनाई है और वह भी मात्र 5 साल में। स्टैच्यु आफ यूनिटी की पूरी परियोजना पर लगभग पचीस सौ करोड़ रुपए की राशि खर्च होने का अनुमान है। इस स्मारक के पास सरदार पटेल के जीवन से जुड़े पहलुओं पर बना संग्रहालय और एक शोध केंद्र भी होगा।


‘स्टैच्यु आफ यूनिटी’ कि इस मुहिम को संघ परिवार की दो दशक पहले इसी किस्म की एक व्यापक मुहिम से तुलना किया जाना वाकई मूर्खतापूर्ण है। अयोध्या में 1990-92 में संघ परिवार ने पांच सौ साल पुरानी बाबरी मस्जिद के स्थान पर राम मंदिर के निर्माण में योगदान देने के लिए लोगों से र्इंटें इकट्ठा की थीं। आज की तारीख में ये तमाम र्इंटें और साजो-सामान आज भी हिंदुत्ववादी संगठनों के गोदामों में पड़ी हैं। और कमोबेश हर कोई इस तथ्य से परिचित है। इन सब के बाबजूद दोनों संप्रदायों ने इतने लंबे वक्त तक धैर्य रखा है क्या यह प्रशंसनीय नही है?

दरअसल अयोध्या के मुद्दे को स्टैच्यू आफ यूनिटी से तुलना कर कांग्रेस पूरे मुद्दे को सांप्रदायिक रंग देना चाहती है और मोदी के कांग्रेस मुक्त भारत के मुहिम को भटकाना चाहती है। विरोधियों के अनुसार मोदी के इस ‘ड्रीम प्रोजेक्ट’ को एक व्यक्तिविशेष की राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए महिमामंडित किया जा रहा है। परंतु कांग्रेस कैंप से आती इन टिप्पणीकारों के पास क्या कोई जबाब है कि आज देश के लगभग 90 प्रतिशत योजनाओं पर ‘गांधी’ नाम का ग्रहण क्यों चढ़ा है?

Amit Sinha is a bilingual Columnist. He can be contacted at facebook.amit

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